Mahakumbh prayagraj

Mahakumbh prayagraj | महाकुम्भ प्रयागराज 2025

महाकुम्भ प्रयागराज 2025 Mahakumbh prayagraj

144 वर्षों के दुर्लभ संयोग के बाद 13 जनवरी से शुरू हो रहे सनातन धर्म के सबसे बड़े गंगा स्नान माघ मेला का शुभ आरम्भ देव भूमि प्रयागराज में हो रहा है सनातन धर्म में विश्वास रखने वालों के लिए यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण संयोग है जो की सैकड़ो वर्षों में एक बार आता है जिसका वर्णन हमारे वेद पुराणों मे भी देखने को मिलता है इस महाकुंभ में कुछ शाही स्नान भी होने वाले हैं इन सब के बारे में विस्तार से जानने के लिए हमारे साथ पोस्ट के अंत तक पढ़ते रहिए।

किसी कवि ने प्रयागराज के बारे में सत्य ही कहा है कि –

है प्रथम यज्ञ भूखंड धरा पर आर्य का आगाज़ है।। है पावन संगम की धरती ये प्रयागराज है ,ये प्रयागराज है।

वेद पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार ऐसे दुर्लभ संजोगों में त्रिवेणी स्नान करने से व्यक्ति के समस्त पापों का नाश होता हैं और उसे विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है इसका कारण यह भी है की प्रयागराज को सबसे बड़े तीर्थ की उपमा प्रदान की गई है। वैसे तो कुंभ का शुभ मुहूर्त हर 12 वर्ष में एक बार आता है परंतु महाकुंभ का शुभ महूर्त कई वर्षों के बाद एक बार आता है जैसा कि इस वर्ष 144 वर्षों के बाद।

महाकुम्भ प्रयागराज का इतिहास

प्रयागराज जिसे कुछ वर्षों पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था यहां पर आपको एक बात याद दिलाते चले की मुगलों के शासनकाल से पहले इस स्थान का नाम प्रयागराज ही था जिसे मुगल शासन काल में परिवर्तित कर के इलाहाबाद कर दिया था परन्तु उत्तर प्रदेश सरकार ने तीर्थ राज प्रयाग को उसकी वास्तविक पहचान पुनः प्रदान कर दी। महाकुंभ का इतिहास उस समय का है जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था।

समुद्र मंथन के समय समुद्र के गर्भ से बहुत से बहुमूल्य औषधियां रतन , ऐरावत हाथी आदि की प्राप्ति हुई थी और इसी समुद्र मंथन के दौरान भयंकर विष का हलाहल भी उत्पन्न हुआ था जिसे देवों के देव महादेव ने अपने कंठ में धारण करके संपूर्ण श्रृष्टि की रक्षा की थी जिससे भगवान शिव को नीलकंठ के नाम से जना जानें लगा।

और इसी समुद्र के गर्भ से मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाली औषधि अमृत कलश भी उत्पन्न हुआ था। जिसे आयुर्वेद के देवता धनवंतरी स्वयं अपने हाथ में अमृत कलश लिए हुए प्रगट हुए थे। अमृत कलश के उत्पन्न होते ही देवताओं और असुरों में विवाद उत्पन्न हो गया की अमृत कौन पिएगा भगवान विष्णु असुरों को अमृत की प्राप्ति नहीं होने देना चाहते थे।

परंतु अमृत कलश के उत्पन्न होते ही देवता और असुर दोनों ही उसे सर्वप्रथम प्राप्त करना चाहते थे ताकि वे सबसे पहले अमरत्व की प्राप्ति कर सकें और अमर हो जाएं धन्वंतरी भगवान ने संकट को बढ़ता देख वहां अमृत कलश को लेकर भागना ही उचित समझा जिस समय वे देवताओं और असुरों से अमृत की रक्षा करते हुए भाग रहे थे।

उसी समय अमृत की चार बूंदें पृथ्वी पर चार अलग-अलग स्थान पर गिर गई वह स्थान क्रमशः इस प्रकार हैं

01- प्रयागराज त्रिवेणी संगम 02- हरिद्वार
03- नासिक04- उज्जैन

प्रयागराज त्रिवेणी संगम

प्रयागराज ये वो स्थान है जहां पर सर्वप्रथम पहली अमृत की बूंद गिरी थी यह स्थान उत्तर प्रदेश में स्थित है यहां पर कुंभ मेले का आयोजन तो हर साल होता है परन्तु समय और महूर्त के अनुसार कुम्भ का अलग-अलग होते हैं जो कि इस प्रकार हैं

कुम्भ के प्रकारकुम्भ का समयकुम्भ का स्थान
01. माघ मेला या छोटा कुम्भयह कुंभ मेला यहां पर हर वर्ष लगता है।प्रयागराज उत्तर प्रदेश (Mahakumbh prayagraj)
02. कुम्भ मेलायह 4 साल में सिर्फ एक बार ही लगता है।प्रयागराज, उज्जैन, नासिक, हरिद्वार
03. अर्द्ध कुम्भ मेलायह 6 वर्ष में एक बार ही आता हैं।प्रयागराज व हरिद्वार
04. पूर्ण कुम्भ मेलायह 12 वर्ष में एक बार आता हैं।प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक, उज्जैन

महा कुम्भ मेला

महा कुंभ मेले का शुभ महूर्त 12 पूर्ण कुम्भ पूरा होने के बाद आता है अर्थात महाकुंभ 144 वर्षों के बाद सिर्फ एक बार आता हैं जोकि वर्ष 2025 में महा कुम्भ मेले का आयोजन हो रहा है। यह महाकुंभ प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक, व उज्जैन में एक साथ आयोजित किया जा रहा है

प्रयागराज त्रिवेणी संगम शाही स्नान

कुंभ के त्रिवेणी संगम में स्नान करने का विशेष महत्व है पुराणों के अनुसार कुंभ स्नान करने पर विशेष पुण्य फल की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि कुंभ स्नान करने से एक अश्वमेघ यज्ञ करने जितना पुण्य प्राप्त होता हैं इस महाकुम्भ में पांच शाही स्नान के योग भी हैं जोकि इस प्रकार हैं

शाही स्नान

  • पहला शाही स्नान – मकर संक्रांति 14 जनवरी 2025
  • दूसरा शाही स्नान – मौनी अमावस्या 29 जनवरी 2025
  • तीसरा शाही स्नान – बसन्त पंचमी 03 फरवरी 2025
  • चौथा शाही स्नान – माघी पूर्णिमा 12 फरवरी 2025
  • पांचवां शाही स्नान – महाशिवरात्रि 26 फरवरी 2025

देवभूमि प्रयागराज की महिमा

देवभूमि प्रयागराज की महिमा का वर्णन करना सूर्य को दीया दिखाने जैसा है प्रयागराज को तीर्थराज की संज्ञा प्रदान हैं तीर्थराज का अर्थ है कि सभी तीर्थों में सबसे बड़ा अर्थात सभी तीर्थों के राजा को तीर्थराज कहा जाता है। जहां तीर्थराज में आज भी गंगा जमुना सरस्वती तीनों नदियों का संगम मानव जाति के पापों को नष्ट करके उन्हें पुण्य प्रदान कर रहा है। तो यही इनके तट पर भक्त शरोमणि वीर हनुमान विश्राम कर रहे हैं पूरे विश्व में हनुमान जी के मंदिर तो बहुत हैं परंतु लेट हुए हनुमान जी का मंदिर यहां पर है जहां पर हनुमान जी विश्राम अवस्था में हैं जिन्हें बड़े हनुमान जी के नाम से भी जाना जाता है।

यहां पर स्थित गंगा नदी के चित्रकूट के तट को पार करके भगवान श्रीराम ने वन को गए थे। और निषाद राज केवट ने सभी चरण कमल को धोकर राम जी की वंदना की थी। पूरे विश्व का सबसे बड़ा मेला प्रयाग राज में लगता है। यहां करोड़ की संख्या में श्रद्धालु आकर पुण्य फल की प्राप्ति करते हैं। और भी न जाने कितने ऋषि मुनियों ने इनके तट पर तपस्या करके अपने मनवांछित फल को प्राप्त किया है।

FAQ

प्रयागराज संगम कहां पर स्थित है?

प्रयागराज संगम उत्तर प्रदेश में स्थित है।

2025 का महाकुम्भ कहा पर लग रहा है?

2025 का महाकुम्भ पूरे भारत में सिर्फ चार जगहों पर लगने वाला है। (Mahakumbh prayagraj) प्रयाग राज, हरिद्वार, नासिक व उज्जैन

महाकुंभ मेला कितने दिनों तक लगता हैं?

महाकुंभ मेला एक महीने तक लगता हैं।

संगम किसे कहते हैं?

जहां पर तीन नदियां एक साथ आकर मिलती हैं उसे संगम या त्रिवेणी कहा जाता है।

Mahakumbh prayagraj में किन नदियों का संगम है?

प्रयागराज में गंगा, जमुना और सरस्वती तीन नदियों का संगम है।

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