परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा parivartini ekadashi 2023
परिवर्तिनी एकादशी, जिसे हम सर्वोत्तम एकादशी भी कहते हैं, हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण पर्व है। यह व्रत परिवर्तिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है और यह हमारे धार्मिक तथ्यों और परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है। जोकि हजारों वर्षो से चला आ रहा है आई इस कथा को विस्तार से जानते हैं।
जब युधिष्ठिर ने भगवान से कहा! भगवन भाद्रपद शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? इसकी विधि क्या हैं तथा इसका महत्त्व कृपा करके कहिए।
तब भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि ये पुण्य, स्वर्ग और मोक्ष को देने वाली तथा सब पापों का नाश करने वाली, उत्तम वामन एकादशी का महत्व मैं तुमसे कहता हूं अब ध्यानपूर्वक सुनो।
यह पद्मा/परिवर्तिनी एकादशी जयंती भी कहलाती है। इसका यज्ञ करने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। पापियों के पाप नाश करने के लिए इससे बढ़कर कोई उपाय नहीं।जो मनुष्य इस एकादशी के दिन मेरी (वामन रूप की) पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं। अत: मोक्ष की इच्छा करने वाले मनुष्य को ये व्रत अवश्य ही करना चाहिए।
जो कमलनयन भगवान का कमल से पूजन करते हैं, वे अवश्य ही भगवान के समीप जाते हैं। जिसने भाद्रपद शुक्ल एकादशी का व्रत और पूजन किया, उसने ब्रह्मा, विष्णु, महेश सहित तीनों लोकों का पूजन किया। अत: हरिवासर अर्थात एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।
इस दिन भगवान करवट लेते हैं, इसीलिए इसको परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं। भगवान के वचन सुनकर युधिष्ठिर बोले कि भगवान! मुझे अति संदेह हो रहा है कि आप किस प्रकार सोते और करवट लेते हैं तथा किस प्रकार से राजा बलि को बांधा और वामन रूप रखकर लीलाएं कीं? चातुर्मास के व्रत की क्या विधि है तथा आपके शयन करने पर मनुष्य का क्या कर्तव्य है। सो भगवन आप मुझे विस्तार से बताइए।
श्रीकृष्ण ने कहा कि हे राजन! अब आप सब पापों को नष्ट करने वाली कथा का श्रवण करें। त्रेतायुग में राजा बलि नामक एक दैत्य था। वह मेरा परम भक्त था। विविध प्रकार के वेद सूक्तों से मेरा पूजन करता था और नित्य ही ब्राह्मणों का पूजन तथा यज्ञ का आयोजन करता था लेकिन इंद्र से द्वेष के कारण उसने इंद्रलोक तथा सभी देवताओं को जीत लिया था।
इस कारण सभी देवता एकत्रित होकर सोच-विचार करके भगवान के पास गए। बृहस्पति सहित इंद्रा आदि देवता प्रभु के निकट जाकर और नतमस्तक होकर वेद मंत्रों द्वारा भगवान का पूजन और स्तुति करने लगे। अत: मैंने वामन रूप धारण करके पांचवां अवतार लिया और फिर अत्यंत तेजस्वी रूप से राजा बलि को जीत लिया।
इतनी वार्ता सुनकर युधिष्ठिर बोले कि हे जनार्दन! आपने वामन रूप धारण करके उस महाबली दैत्य को कैसे जीता? श्रीकृष्ण कहने लगे मैंने वामन रूपधारी ब्रह्मचारी ब्राह्मण के रूप में बलि से तीन पग भूमि की याचना करते हुए कहा ये मुझे तीन लोक के समान है और हे राजन यह आपको अवश्य ही देनी होगी।
राजा बलि ने मेरी इस याचना को तुच्छ याचना समझकर तीन पग भूमि देने का संकल्प मुझको दे दिया और मैंने अपने त्रिविक्रम रूप को बढ़ाकर यहां तक कि भूलोक में पद (पैर), भुवर्लोक में जंघा(जांघ), स्वर्गलोक में कमर, मह:लोक में पेट, जनलोक में हृदय, यमलोक में कंठ की स्थापना कर सत्यलोक में मुख, और उसके ऊपर मस्तक स्थापित किया।
सूर्य, चंद्रमा आदि सब ग्रह गण, योग, नक्षत्र, इंद्रादिक देवता और शेष आदि सब नागगणों ने विविध प्रकार से वेद सूक्तों से प्रार्थना की। तब मैंने राजा बलि का हाथ पकड़कर मैने कहा कि हे राजन! एक पैर से पृथ्वी, दूसरे से स्वर्गलोक पूर्ण हो गए। अब तीसरा पैर मैं कहां रखूं?तब दैत्यराज बलि ने अपना शीश झुका कर उसपर पग रखने का अनुरोध किया और मैंने अपना पैर उसके मस्तक पर रख दिया जिससे मेरा वह भक्त पाताल को चला गया।
फिर उसकी विनती और नम्रता को देखकर मैंने कहा कि हे बलि! मैं सदैव तुम्हारे निकट ही रहूंगा। विरोचन पुत्र बलि के कहने पर भाद्रपद शुक्ल एकादशी के दिन बलि के आश्रम में मेरी मूर्ति की स्थापना हुई।
इसी प्रकार दूसरे क्षीर सागर में शेषनाग के पष्ठ (फन)पर हुई! हे राजन! इस एकादशी को भगवान शयन (सोते) करते हुए करवट लेते हैं, इसलिए तीनों लोकों के स्वामी भगवान विष्णु का उस दिन पूजन करना चाहिए।
इस दिन तांबा, चांदी, चावल और दही का दान करना सर्वथा उचित है। रात्रि को जागरण अवश्य ही करना चाहिए।जो विधि पूर्वक इस एकादशी का व्रत करते हैं, वे सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाकर चंद्रमा के समान प्रकाशित होते हैं और यश को प्राप्त होते हैं। जो इस पाप नाशक कथा को पढ़ते और सुनते हैं, उनको हजार अश्वमेध यज्ञ के फल की प्राप्ति होती हैं।
परिवर्तिनी एकादशी 2023 का महत्त्व
इस पर्व का महत्वपूर्ण कारण है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। भगवान विष्णु हमारे जीवन में सुख और समृद्धि की दिशा में मदद करते हैं, और परिवर्तिनी एकादशी के दिन उनकी पूजा से तीनों लोक की पूजा करने के समान फल प्राप्त होता है जिससे हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन होते है।
यह व्रत तब से मनाया जाता है जब भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण करके दैत्य राजबली से उसका समस्त राज्य दान में प्राप्त कर लिया था और देवताओं की दैत्यों से रक्षा की थी। और इसी दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हुए करवट लेते हैं इसे आगे कथा में विस्तार पूर्वक बताया गया है।
परिवर्तिनी एकादशी हमारे धार्मिक तथ्यों और परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है, और इसे मनाने से हमारे जीवन में आत्मिक और आध्यात्मिक विकास का सामर्थ्य बढ़ता है। इस पर्व के द्वारा हम भगवान विष्णु की आराधना करते हैं और उनकी कृपा की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।
परिवर्तिनी एकादशी की पूजा विधि
सर्वप्रथम आपको नित्य कर्मों से निवृत होकर स्नान आदि करके अपने आप को स्वच्छ और पवित्र बनाएं उसके पश्चात इस व्रत की पूजा विधि को प्रारम्भ करें
इस व्रत की पूजा विधि अत्यंत महत्वपूर्ण है। पूजा के दौरान भगवान विष्णु की मूर्ति को सुंदर फूलों से सजा संभव हो सके तो कमल का प्रयोग करें क्योंकि भगवान विष्णु को कमलनयन भी कहा जाता है और कमल का फूल इन्हें बहुत प्रिय भी है धूप दीप के साथ पूजा किया जाता है। भक्त भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करते हैं और उनकी कृपा की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।
परिवर्तिनी एकादशी के मंत्र
परिवर्तिनी एकादशी के दिन, भक्तगण विष्णु मंत्रों का जाप करते हैं, जैसे कि
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः” और “ॐ नमः श्रीमद्वत्सलाय नमः”। ये मंत्र भगवान विष्णु की आराधना में अत्यंत प्रभावी सिद्ध होते हैं।
परिवर्तिनी एकादशी का महत्त्वपूर्ण तथ्य
- इस पर्व को विशेष भक्ति और श्रद्धा के साथ मनाने से सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
- इस दिन व्रत करने से पुण्य में वृद्धि होती है और पाप का नाश होता है।
- यह पर्व हमें धार्मिक महत्व की याद दिलाता है और हमारी आध्यात्मिक उन्नति में मदद करता है।
- इस व्रत का पालन करने से तीनों लोकों की पूजा का फल प्राप्त होता हैं
परिवर्तिनी एकादशी शुभ मुहूर्त
2023 के पंचांग और abp news के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की परिवर्तिनी एकादशी तिथि 25 सितंबर 2023 को सुबह 07:55 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन 26 सितंबर 2023 को इसका समापन सुबह 05 बजे तक रहेगा.
परिवर्तिनी एकादशी का आरम्भ | 25/09/23 को 07:55 AM |
समाप्त | 26/09/23 को 05:00 AM |
विष्णु जी की पूजा का शुभ मुहूर्त | प्रातः 09.12 – प्रातः 10.42 तक |
व्रत पारण | 26/09/23 को दोपहर 01:25 से 03: 49दोपहर तक |
राहुकाल का आरम्भ | सुबह 07:41 से सुबह 09:12 तक |
परिवर्तिनी एकादशी पूजा विधि मंत्र सहित pdf
parivartini ekadashi पर पूछे जाने वाले कुछ महत्त्वपूर्ण प्रश्न FAQ
क्या परिवर्तिनी एकादशी केवल हिन्दू धर्म के अनुष्ठान के रूप में माना जाता है?
हा मुख्य रूप parivartini ekadashi का यह पर्व हिंदू धर्म में ही मनाया जाता है।
परिवर्तिनी एकादशी के दिन कौन-कौन से मंत्र पढ़े जाते हैं?
parivartini ekadashi के दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः” और “ॐ नमः श्रीमद्वत्सलाय नमः” मंत्रो का जाप किया जाता हैं।
क्या परिवर्तिनी एकादशी का व्रत करने से कोई विशेष लाभ होता है?
इस व्रत का पालन करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
परिवर्तिनी एकादशी का महत्व और अर्थ क्या है?
इस दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हुए करवट लेते हैं और इसी दिन उन्होंने दैत्यराज बली से तीन पग भूमि मांग कर देवताओं की रक्षा की थी जिसे parivartini ekadashi के रूप में मनाया जाता हैं
परिवर्तिनी एकादशी को किन किन नामों से जाना जाता है?
parivartini ekadashi को जल झूलनी एकादशी और पद्मा एकादशी के नामों से भी जाना जाता हैं
Disclaimer
swagatam.in किसी भी तरह की प्रथा या मान्यता की पुष्टि नहीं करता इसलिए किसी भी प्रथा और मान्यता को अमल में लाने से पहले विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।